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15 October, 2011

मुहब्बत की शुरुआत


खामोश बैठी वो हसीन लग रही थी
खुदा की कसम, बहुत कमसीन लग रही थी।



पलकें हया से उठा कर देखती रही
सहला के जुल्फों को नजर फेरती रही।

मेरे दिल मे भी एक ख्वाब पलने लगा
धड़कन बढ़ ग और मन मचलने लगा।

बार बार चेहरे पे जुल्फों का गिरना
कानों में उसकी बालीयों का हिलना,

गजब ढा रहा था अधरों की मुस्कान
कातिल नजरे उसकी ले रही थी मेरी जान


वही पीपल के नीचे मुलाकात होने लगी
धीरे-धीरे प्यार की शुरुआत होने लगी

जाते - जाते हाथों से ईशारा कर गई
मैं उसपे मर गया, वो हम पे मर ग

सिलसिला मुलाकातों का और ही बढ़ते गया
मुहब्बत की सीढ़ी, मैं यूं ही चढ़ते गया...।

7 comments:

Anju (Anu) Chaudhary said...

waha prem ras mei bhigi ye rachna

संजय भास्‍कर said...

वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

Amrita Tanmay said...

सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है ....!

pradeep tiwari said...

neelu ji ise anjam tak pahuchaiye abhi climex baki hai

Vibha Saurav Kumar said...

very true...........

Dr.NISHA MAHARANA said...

bhut achcha.

Naveen Mani Tripathi said...

vah kya anubhuti ? jeete rho nirala ji .

लिखिए अपनी भाषा में...

जीवन पुष्प

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