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19 October, 2011

अमावस की काली रात

अमावस की काली रात में
घनघोर घटा बरसात में,
रह-रह के मोरा जी घबराये
देर हुई मोरे पिया ना आये।

 

कैसे कटेगी भय की रतिया
कैसे करुंगी प्यार की बतिया,
तपन विरह की, तन को जलाये
देर हुई मोरे पिया ना आये।

सर-सर, सर- सर, पछुआ डोले
सन-सन तन करे हौले हौले,
व्याकुल मन में हूक उठाये
देर हुई मोरे पिया ना आये।


दादुर ताल-तलैया बोले
हृदय में एक गरल सा घोले,
काले भुजंग है फण फैलाये
देर हुई मोरे पिया ना आये।

घर पानी आंगन में पानी
मेरे दोनो नैन में पानी,
ये पानी दामन को भिंगाये
देर हुई, क्यों पिया ना आये...?

 ( शब्दार्थः गरल - जहर,  दादुर - मेढक,  भुजंग - सांप  )

लिखिए अपनी भाषा में...

जीवन पुष्प

हमारे नये अतिथि !

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