मुंतजिर हूं मैं तेरी, तू कितना सितम ढायेगा
ये उसूल मुहब्बत की तुम कब निभायेगा ?
आया जीस्त का पैगाम परवर दीगार से
हमे हकीकत से रुबरु तू कब करायेगा ?
ये उसूल मुहब्बत की तुम कब निभायेगा ?
आया जीस्त का पैगाम परवर दीगार से
हमे हकीकत से रुबरु तू कब करायेगा ?
मेरी कोई तुम बिन, वजूद नही हमदम
मेरे बिना तू भी नही जी पायेगा।
पोछ दो आंसू मेरी तुम अपनी हथेली से
कब तलक तुम तन्हा हमे रुलायेगा ?
कब लायेगा बारात, शहनाईयों के साथ
कब हमे तुम अपना दुलहन बनायेगा ?
वादा किया थामूंगा, उम्र भर के लिये
कब वो कसम फख्र से आकर निभायेगा ?
मुरीद हूं मैं तेरी, उम्मीद के चमन में
दे कोई सदा, नही तो सांस टूट जायेगा।
1 comment:
bahut sundar........
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