सिसकती रुह परेशान है।
मेरी जिंदगी अब श्मशान है।
मेरी जिंदगी अब श्मशान है।
रंगत बुलंद है रंजिशों की
रंजीदा दिल बेजान है।
शिगाफ है बेआबरु जिगर में
गर्दिश में हमारी शान है।
तअल्लुकात क्या रखूं शीरीनी से,
जब जहर में बुर्द मेरी जान है।
बेगाना हुआ दिल बेकसूर
अब बेहया का क्या मुकाम है?
सूफी बनने को चला था वो,
आज खाक मे उसका ईमान है।
क्यों उम्मीद करुं और सब्र करु
जब रहगुजर का काम तमाम है।
गर्दिश में हमारी शान है।
तअल्लुकात क्या रखूं शीरीनी से,
जब जहर में बुर्द मेरी जान है।
बेगाना हुआ दिल बेकसूर
अब बेहया का क्या मुकाम है?
सूफी बनने को चला था वो,
आज खाक मे उसका ईमान है।
क्यों उम्मीद करुं और सब्र करु
जब रहगुजर का काम तमाम है।
12 comments:
बहुत खूब...उम्दा
कल 26/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
साधु-साधु
अच्छी गज़ल ..
समसान की जगह शायद शमशान आना चाहिए
वाह ...बहुत बढि़या।
बहुत खूब
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
सादर बधाई
कल 28/12/2011 को आपकी कोई एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, कौन कब आता है और कब जाता है ...
धन्यवाद!
behtareen
आपके ब्लॉग का कलेवर बहुत ही खूबसूरत है । सुंदर रचना । आगामी वर्ष के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं
लाजबाब रचना
नववर्ष की मंगल कामनाएं .
सुन्दर अभिव्यक्ति ...
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