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02 October, 2011

एक अलग एहसास


कभी तुम गुमसुम होकर देखो
कभी तन्हा में रोकर भी देखो।

राहों में गुलशन की
चाहत है सबको,
कभी तुम काटों पे सोकर भी देखो।



संभल - संभल कर
चलते सभी है,
 कभी खुद को लगाकर, ठोकर भी देखो।
 

रिमझिम बारिश में, सब भींगते है
कभी अश्कों में खुद को  डूबोकर भी देखो।
 
जल के फुहारों से
निखरता है चेहरा,
कभी तुम अश्कों से धोकर भी देखो।

जोड़ते हैं लोग रिश्ते अपनों से अकसर
,
कभी तुम गैरों का होकर भी देखो।

बिछुड़ने का दर्द
होता है कितना,

कभी तुम अपनों को खोकर भी देखो।

लोग हकीकत में तो
रोज मिलते है,
कभी
तुम एहसासो में छू कर भी देखो।

2 comments:

विभूति" said...

लोग हकीकत में तो रोज मिलते है,
कभी तुम एहसासो में छू कर भी देखो।dil ko chu gayi panktiya...

avanti singh said...

waah! kya baat hai....

लिखिए अपनी भाषा में...

जीवन पुष्प

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