मेरी जिंदगी की कश्ती बिन माँझी के
ईशारों पे चलता रहा काली आंधी के।
ईशारों पे चलता रहा काली आंधी के।
मौत की आहट, हमेशा डराती रही
साँस आती रही साँस जाती रही।
साँस आती रही साँस जाती रही।
जख्म नासूर हुआ, थी मरहम की चाहत
खुदा भी रो दिया, देखा जो मेरी हालत ।
खुदा भी रो दिया, देखा जो मेरी हालत ।
कतरा कतरा आंसू , पलकों में समाती रही
साँस आती रही साँस जाती रही।
साँस आती रही साँस जाती रही।
मेरे दर्द-गम में, कई लोग घुल गये
बिछड़े कई तो कई मिल गये।
बिछड़े कई तो कई मिल गये।
जिंदगी अपना रंग, कुछ यूँ दिखाती रही
साँस आती रही साँस जाती रही।
साँस आती रही साँस जाती रही।
आँसू नही तुझे पसीना बहाना है
खुदी को बुलंद कर, मंजिल तक जाना है।
खुदी को बुलंद कर, मंजिल तक जाना है।
माँ सिसकती रही और बताती रही
साँस आती रही साँस जाती रही।
साँस आती रही साँस जाती रही।
जिंदगी तो अनसूलझी एक पहेली है
कभी दुश्मन तो कभी सहेली है।
कभी दुश्मन तो कभी सहेली है।
मैं समझा नही, माँ समझाती रही
साँस आती रही साँस जाती रही।
साँस आती रही साँस जाती रही।
6 comments:
बहुत बढ़िया,
बड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....
कल 10/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सचमुच अनगढ़ पहेली ही तो है ये जीवन...
बहुत सुन्दर रचना...
शुभकामनाएँ.
सच कहा अपने..कभी पहेली तो कभी सहेली है ये जिंदगी...सुन्दर रचना..
बहुत बढि़या।
जिंदगी के अजीब किस्से है
कभी सहेली बन साथ निभाती है
तो कभी पहेली बन उलझाती है
बेहतरीन रचना..
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