मेरी ख्वाहिश तुम मत करना
मेरे लिये आहें मत भरना
मैं अगले जनम में तुम्हारा हूं
अभी मैं कई दर्दों का मारा हूं।
बन गया जीवन खानाबदोश
होश में भी, दीखता हूं बेहोश
मैं आसमां का टूटा तारा हूं
अभी मैं कई दर्दो का मारा हूं।
मिलकर भी हम मिल नही पाये
खिल कर भी हम खिल नही पाये
जब मुरझाया तो, तूम्हें पुकारा हूं
अभी मैं कई दर्दों का मारा हूं।
जिस जल से बुझती प्यास तेरी
जिसे देख के जगती आस तेरी,
आज वही दिशाहीन, जलधारा हूं
अभी मैं कई दर्दों का मारा हूं।
1 comment:
बहुत सुंदर रचना !
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