जन्मभूमि की सौंधी मिट्टी मे
हम प्रेमजल बरसायेंगे,
पिया लौट के आजा अपना गॉंव
हम सूखी रोटी ही खायेंगे।
हम प्रेमजल बरसायेंगे,
पिया लौट के आजा अपना गॉंव
हम सूखी रोटी ही खायेंगे।
पिया लौट के आजा अपना गॉंव
हम सूखी रोटी ही खायेंगे।
हम सूखी रोटी ही खायेंगे।
मर गई बकरी, दुबली है गैया
चारा क्या इसे खिलायेंगे?
बीमार पड़ी है खाट पे मैया,
दवा क्या इन्हें पिलायेंगे।
चारा क्या इसे खिलायेंगे?
बीमार पड़ी है खाट पे मैया,
दवा क्या इन्हें पिलायेंगे।
पिया लौट के आजा अपना गॉंव
हम सूखी रोटी ही खायेंगे।
हमें नही महलों का सपना
टूटी मड़ैया सा घर अपना,
इसी में खूशी के दो पल
हम सब साथ बितायेंगे।
टूटी मड़ैया सा घर अपना,
इसी में खूशी के दो पल
हम सब साथ बितायेंगे।
पिया लौट के आजा अपना गॉंव
हम सूखी रोटी ही खायेंगे।
हम सूखी रोटी ही खायेंगे।
2 comments:
भावपूर्ण रचना....
waw ....
very beautiful poem
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