महफूज रहे मुल्क ऐसा हिजाब बना दो
ढक लूं तसदीह ऐसी नकाब बना दो।
ढक लूं तसदीह ऐसी नकाब बना दो।
है खुशी के दामन में गर्दिशों का अंधेरा,
हर इसां को दमकता हुआ आफताब बना दो।
झुलस रही है दुनिया दहशत की आग में,
तुम आज इसे शीतल महताब बना दो।
नफरत के मयखानों में बेहोश पड़े हैं लोग,
छाये उलफत की नशा ऐसी शराब बना दो।
छाये उलफत की नशा ऐसी शराब बना दो।
पढ़ सके हर लोग अमन चैन का किस्सा,
हर मुल्क में एक ऐसी किताब बना दो।
हर मुल्क में एक ऐसी किताब बना दो।
उपज रहे हैं कांटे वतन के गुलिस्तॉं में,
इसे रुहानी ताकत से गुलाब बना दो।
झूमे मुल्क सारा अमन के राग पे,
तुम ऐसा कोई सरगम लाजबाब बना दो।
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