उन्हें ढूंढ़ रही आंखें तरसकर
नदी किनारे बरस बरसकर।
गिरती पलकें थक हारकर
करुण वेदना का अश्रु बहाकर।
नदी किनारे बरस बरसकर।
गिरती पलकें थक हारकर
करुण वेदना का अश्रु बहाकर।
याद बहुत आती है मुझको
मेरी मुहब्बत, मेरी जान
मैं अब भी वही पर ढूंढ़ रहा हूं
उनके कदमों का निशान...
व्याकुल मन से गले लगाकर,
रखकर मेरे हाथों में हाथ
यहीं तड़पकर छोड़े थे वो,
मेरे जीवन का अंतिम साथ।
प्रेम के शत्रु घात लगाये
रहते थे हरदम तैयार,
इस कारण, हमदोनो मिलने
एक दिन आये थे, नदी के पार।
एक दिन आये थे, नदी के पार।
हमदोनो की हंसी ठिठोली
कुछ पल सुहाने, बीते थे संग
अचानक चीखे, वो पैर पटककर
कुछ पल सुहाने, बीते थे संग
अचानक चीखे, वो पैर पटककर
काट लिया जो उन्हें भुजंग।
गोद में लेटे तड़प रहे थे
वो पल पल हुये निढाल,
वो पल पल हुये निढाल,
नाकाम हुई थी हर कोशीश
मैं भी था बेबस और बेहाल।
मैं भी था बेबस और बेहाल।
नैनों से धारा छूट रही थी
सासों की लड़ीया टूट रही थी
जिंदगी उनकी रुठ रही थी
मौत आकर लूट रही थी।
सासों की लड़ीया टूट रही थी
जिंदगी उनकी रुठ रही थी
मौत आकर लूट रही थी।
निर्जल अधर सब सूख रहा था
व्याकुल आत्मा घूट रहा था
ढलता सूरज डूब रहा था।
उनके अंतिम शब्दों का तराना
कह गये मुझको भूल ना जाना।
छोड़ चला मैं तेरा जमाना
मेरे बाद , यहां तुम रोज आना।
मैं नही मेरी याद सही,
तुम उसे ही गले लगाते रहना।
बुझ ना पाये मेरे प्यार का दीपक,
तुम आकर इसे जलाते रहना...।
तुम उसे ही गले लगाते रहना।
बुझ ना पाये मेरे प्यार का दीपक,
तुम आकर इसे जलाते रहना...।
2 comments:
touching.........
bahut achi rachna hai...bdhaai....
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