मेरी नाजनी का नवसत दुति
छवि विभारन सी प्रस्तुति
रजनी में जो उसकी दीप्ति है,
मेरे तृषित मन की तृप्ति है।
छवि विभारन सी प्रस्तुति
रजनी में जो उसकी दीप्ति है,
मेरे तृषित मन की तृप्ति है।
निधि विभा की वो सृष्टि है
मेरे तृषित मन की तृप्ति है।
मानवती, मानसी, वो नयनागर
पुलकित मन से वो मेरे घर
पुलकित मन से वो मेरे घर
स्नेहों का जो करती वृष्टि है
मेरे तृषित मन की तृप्ति है।
चेहरे को पढ, कह देती कथा
बड़ी अनोखी जो उसकी दृष्टि है
मेरे तृषित मन की तृप्ति है।
हमे अपनी समाश्रय में रखना
हमे अपनी समाश्रय में रखना
प्रामद्य होकर प्रेमालाप करना
यही निरंतर जो उसकी कृति है
यही निरंतर जो उसकी कृति है
मेरे तृषित मन की तृप्ति है।
1 comment:
काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर
संजय कुमार
आदत….मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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