लब हिलें है बार-बार, आँखे इंतेजार कर चुकी है
किया हूँ
इकरार बहुत, वो इनकार कर चुकी है !
दोष तकदीर का है य़ा तदवीर का सनम
वो
दर्द-ए-खंजर आर-पार कर चुकी है !
ये मेरे दिल की लगी है या है उनकी
दिल्लगी
हर कतरा
ज़िस्मों-जान गुलजार कर चुकी है !
क्यो नहीं कर रही इज़हारे-इश्क वो
अभी तक
जबकी पहले
ही सब हदें वो पार कर चुकी है !
लगाई मलहम भी अहिस्ता कांटों की नोक से
अब हर मर्म का दामन जार-जार कर चुकी
है !
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