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17 August, 2021

एक मुहब्बत आहिस्ता...

लब हिलें है बार-बार, आँखे इंतेजार कर चुकी है
किया हूँ इकरार बहुत, वो इनकार कर चुकी है !

दोष तकदीर का है य़ा तदवीर का सनम 
वो दर्द-ए-खंजर आर-पार कर चुकी है !

ये मेरे दिल की लगी है या है उनकी दिल्लगी
हर कतरा ज़िस्मों-जान गुलजार कर चुकी है !

क्यो नहीं कर रही इज़हारे-इश्क वो अभी तक
जबकी पहले ही सब हदें वो पार कर चुकी है !

लगाई मलहम भी अहिस्ता कांटों की नोक से
अब हर मर्म का दामन जार-जार कर चुकी है !


                            

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जीवन पुष्प

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