* * * * जीवन पुष्प * * * *
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शायरी
28 September, 2021
दरख़्त
मैं वो दरख़्त हूँ जो बुत्त बनकर अभी भी खड़ा हूँ...
अब देखना हैं ज़मीर उस ओस के बुन्द की...
कि वो मेरे आगोश में गिर कर समाते है...!
या ज़मीं पर लूढ़क कर मिट्टी की प्यास बुझाते है ...!!
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