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24 October, 2021

मेरे हबीब

 


ना जाने कितने रिश्ते टूट गए करीब का !
अब जा के हुआ है साथ मेरे हबीब का !!

खा कर ठोकरें गिरा हूँ ज़माने में बहुत 
जायेंगे संभल, ये तो खेल है नसीब का !

पाया हूँ सिद्दत से, कभी नहीं खोऊंगा तुम्हे
रखुं कांधे पे सर, सहलाना इस रकीब का   !

वादा करो निभायेंगे हम, साथ कयामत तक
मेरी नाजनी, है ये दुनिया बहुत अजीब का  !

बन जाऊँगा कभी मुकद्दर का सिकन्दर मैं 
बस दिलाते रहना यकीं, तुम इस गरीब का !


********************
हबीब = दोस्त  
रकीब = गरीब 
नाजनी = दोस्त (स्त्री)
मुकद्दर = किस्मत 
सिकंदर = सम्राट 


लिखिए अपनी भाषा में...

जीवन पुष्प

हमारे नये अतिथि !

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