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07 January, 2012

जीवन ज्योति


वो दिन गए जब 
मैं बँधवाया करती थी
लाल-लाल फीतों में 
अपनी अम्मा से चोटी !
काजल लगवाती थी
आँगन में खिले फूलों से 
बालों को सजाती थी
फिर खिल उठती थी
मेरे नैनों की ज्योति !


जब, आईना देखती थी 
तो अम्मा से पूछती थी 
" अम्मा मैं कैसी लगती हूँ ?
क्या मैं सचमुच की 
मुनिया लगती हूँ...? "
अम्मा हँस पड़ती थी 
फिर गोद में सुलाकर
धीरे-धीरे बालों को  
हाथो से सहलाती थी !

कितना सुहाना पल था 
जीवन के उस मोड़ पर
कितना अपनापन था
रिश्ते के उस जोड़ पर
मैं सबकी एक प्यारी
मुनिया हुआ करती थी
अपनी अम्मा की तो 
दुनिया हुआ करती थी !

पर आज हो गई मैं 
एक बेबस अकेली...
कल तक तो थी मेरी
एक  अम्मा ही सहेली
पर वो तो चली गई
एक पुरानी हवेली
जहाँ कोई किसी को 
कभी सताता नहीं
जहाँ से लौटकर भी 
 कोई आता नहीं !

आज मेरे बालों के फीते
ढीले पड़ गये है 
और चेहरे के रंग
पीले पड़ गये है
अब किससे पूछूं अम्मा
कि मैं कैसी लगती हूँ ?
तेरी तस्वीर के सामने 
मैं सिसकने लगती हूँ...!

तुम तो ढल चुकी हो
आज देखो ये बदमाश 
सूरज भी  ढल रहा है 
और संग-संग उसके 
मैं भी ढल रही हूँ... 
परिवर्तन तो संसार का
नियम है ना अम्मा ?
इसलिए मैं भी आज 
करवटें ले रही हूँ !

अम्मा आ रही हूँ मैं भी 
उसी पुरानी हवेली में 
वहीं बितायेंगे हम-तुम 
फिर संग-संग सहेली में 
फिर से बंधवायेंगे वहाँ
लाल फीते वाली चोटी 
यहाँ धूमिल पड़ गई है 
मेरे जीवन की ज्योति !

31 comments:

विशाल said...

बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति .
निराशावादी तो है.
पर है खूबसूरत.

ऋता शेखर 'मधु' said...

बहुत भावपूर्ण रचना...भावनात्मक रिश्ते और कालचक्र को बखूबी बता रही है यह कविता|

नीरज गोस्वामी said...

आप की रचना भावुक कर गयी...बेजोड़ ...


नीरज

रश्मि प्रभा... said...

bahut hi pyaari rachna

Dr. SHASHI.... ( Ek Kasak ) said...

aankhen nam ho gayin, bahut hi gehri aur ek hakeekat ko darshati aap ki ye rachna.badhayi

Mamta Bajpai said...

dil se jikhi gayi hai ..bahut hii maarmik
badhai

Naveen Mani Tripathi said...

bahut hi sundar rachana likhi hai apne badhai

प्रेम सरोवर said...

आपकी भाव-प्रवण कविता 'जीवन ज्योति" अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "तुझे प्यार करते-करते कहीं मेरी उम्र न बीत जाए" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

महेन्‍द्र वर्मा said...

अतीत को फिर से जी लेने की इच्छा को अभिव्यक्त करती अच्छी कविता।

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया।

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 09/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

अंतर्स्पर्शी रचना...
बधाई...

sangita said...

snehil post hae . seema ka geet yad aa gya "suno chhoti si gudiya ki lambi khani"mere blog par aapka svagat hae.

डॉ. जेन्नी शबनम said...

behad maarmik abhivyakti. kavita padhte padhte aankhein bhar aayee. prakriti ka niyam...yun hin saath chhut jata hai apno ka. shubhkaamnaayen.

vidya said...

वाह..
बहुत सुन्दर रचना...
मन को भिगो गयी..
सादर.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मार्मिक अभिव्यक्ति ... सबको ही जाना है एक दिन ..बिछडना है अपने प्रिय लोगों से .

सदा said...

बहुत ही अच्‍छी शब्‍द रचना ।

Anonymous said...

बहुत ही शानदार और सुन्दर पोस्ट|

Sunil Kumar said...

एक अतिसंवेदनशील रचना जो निशब्द कर देती है ......

विभूति" said...

कोमल भावो की अभिवयक्ति......

मेरा मन पंछी सा said...

बहूत हि प्यारी और भावूक रचना है...

Kailash Sharma said...

बहुत भावमयी मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह ...कालचक्र का सटीक वर्णन..शब्द शब्द जीवन दर्शन से भरा हुआ

Asha Lata Saxena said...

काल चक्र का सुन्दर वर्णन
आशा

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

जिसने जीवन में इस अकेलेपन को जिया हो वही समझ सकता है इस मर्म को.यथार्थ के धरातल से जन्में भाव.

प्रेम सरोवर said...

आपके पोस्ट पर आकर का विचरण करना बड़ा ही आनंददायक लगता है । पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद।

Smart Indian said...

अति मार्मिक, अति सुन्दर!

Monika Jain said...

hridaysparshi sundar rachna ...
Welcome to मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली

दिगम्बर नासवा said...

संवेदनशील लिखा है बहुत ... अंदर तक जाती है आपकी रचना ...

Jeevan Pushp said...

आप सभी को हमें उत्साहित करने के लिये दिल से शुक्रिया !

Asha Lata Saxena said...

बहुत भावपूर्ण सशक्त रचना के लिए बधाई स्वीकार करें |

लिखिए अपनी भाषा में...

जीवन पुष्प

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