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03 December, 2020

दिलजले








न जाने तुम कहाँ थी

और मैं कहाँ था...

थी तुम भी मस्त

अपनों के संग...


ख्वाब पलने के लिए

मेरा भी एक जहाँ था

पर जख्म सिलने के लिए

मलहम कहाँ था ...?


हम मिले भी तो क्या मिले

जख्म सिले भी तो क्या सिले,

शिकायत है ज़िन्दगी से

और है बहुत शिकवे-गिले

कि हम पहले क्यों नहीं मिले ...?


कितने दूर है हम

कितने मजबूर है हम

कभी रूह तड़पती है

कभी आंहें निकलती है...

जब याद बहुत आती है

आँखों में सन्नाटा छाती है


अब तो और ज्यादा

खवाब पलने लगे हैं

शाम-ए-ज़िन्दगी के 

थोडा और भी ढलने लगे है !


मुहब्बत की इस राह में,

न जाने हम कहाँ चले है 

इश्क की इस आह में

हम दोनों दिलजले है...!

2 comments:

कविता रावत said...

सच जब अपना कोई मिल जाता है तो बहुत सी अपनेपन की चाहतें जाग उठती हैं सीने में

बहुत सुन्दर

Ankit said...

आपने बहुत ही शानदार पोस्ट लिखी है. इस पोस्ट के लिए Ankit Badigar की तरफ से धन्यवाद.

लिखिए अपनी भाषा में...

जीवन पुष्प

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