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12 October, 2011

दर्द का मारा


          मेरी ख्वाहिश तुम मत करना
          मेरे लिये आहें मत भरना
          मैं अगले जनम में तुम्हारा हूं
          अभी मैं कई दर्दों का मारा हूं।


बन गया जीवन खानाबदोश
होश में भी, दीखता हूं बेहोश
मैं आसमां का टूटा तारा हूं
अभी मैं कई दर्दो का मारा हूं।

           मिलकर भी हम मिल नही पाये
           खिल कर भी हम खिल नही पाये
           जब मुरझाया तो, तूम्हें पुकारा हूं
           अभी मैं कई दर्दों का मारा हूं।

जिस जल से बुझती प्यास तेरी
जिसे देख के जगती आस तेरी,
आज वही दिशाहीन, जलधारा हूं
अभी मैं कई दर्दों का मारा हूं।

1 comment:

अभिव्यंजना said...

बहुत सुंदर रचना !

लिखिए अपनी भाषा में...

जीवन पुष्प

हमारे नये अतिथि !

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