जीवन के अंगारों पे चलकर
उग आये फफोले पाँव में
फिर भी कहीं मैं रुका नहीं
किसी पेड़ों की छाँव में
करते क्या गैरों से शिकायत
घर की आँखों ने की परिहास
सच कहता हूँ उसी समय से
होने लगा दर्द का एहसास
पथरीले पथ से टकराकर
पाँव के फफोले फूटने लगे
मन मेरे विचलित हो-होकर
उलझी साँसों में घुटने लगे
सबकी आँखें ये कहने लगी
देखो देखो तेरे पाँव रो रहे हैं
आँखें आँसूओं से धोती रही चेहरे को
आज फूटकर फफोले तेरे पाँव धो रहे है...!
39 comments:
हम सबका पथरीले पथ का सफ़र हौसले के साथ तय हो!
fir bhi jeevan chalne ka naam.....
aur yahi fafole kabhi hmaari rahon se kaanton ko dho denge....aur fir us jeevan ke liye jimmedaar hum honge..sirf hum...aur koi nahin..
hausla rakhen..
ये फफोले ही मंजिल पाते हैं ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी
निःसंदेह जीवन में कडवे अनुभव ,फफोलों की तरह होते हैं..
सुन्दर ,पर ह्रदय की वेदनाओं से परिपूर्ण कविता..
कभी आइये मेरे ब्लॉग पर
kalamdaan.blogspot.com
मनीष जी कमाल का लिखा है बहुत ही सुंदर रचना !
मार्मिक होते हुए कविता में एक सन्देश भी है.प्रभावशाली अभिव्यक्ति.
वाह...बहुत सुन्दर रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
sandesh vahak post hae .
बेहतरीन रचना..
सारगर्भित अभिव्यक्ति ....समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://aapki-pasand.blogspot.com/
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
Bahut sunder rachna badhai sweekarein
बहुत संवेदनशील रचना है दिल के अन्दर तक उतर गयी , बधाई
पाँव के फफोले ये बताते हैं कि हम जीवन में कितने प्रयत्नशील हैं...
कौन कहता है कि आसमां में सुराख़ नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों.
मकर संक्रातिं की हार्दिक शुभकामनाएं...
बहुत खूब , शुभकामनाएं.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधार कर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें
जीवन पथ पर गहन एहसासों से जुडी भावाभिव्यक्ति .
भावपूर्ण एवं सुंदर रचना.
आभार.
जीवन की सच्चाई - ये आंसू और फफोले ही मिलाते हैं मंजिलों से.
भाव पूर्ण अभिव्यक्ति.
GAJAB KE BHAVON KA SANYOJAN BADHAI NIRALA JI.
Nirala ji aap ki lekhni me to jadu hai , aap ka har ek shabd bhavon se bhara hua hota hai.badhai
पांव रो रहे हैं !
बहुत खूब, बहुत बढि़या !
नए बिम्बों के प्रयोग से कविता के भाव गहन हो गए हैं।
सुन्दर और मार्मिक पोस्ट|
सच अपनों का दर्द कुछ ज्यादा ही सालता है...
सुन्दर प्रस्तुति..
आँखें आंसुओं से, धोती रही चहरे को
आज फुटकर फफोले,तेरे पांव धो रहे हैं.
वाह बहुत खूब.. उम्दा बधाई स्वीकार करें
मैं आपको मेरे ब्लॉग पर सादर आमन्त्रित करता हूँ.....
बिना एहसास के जी रहा हूँ ,ज़िंदा हूँ ,ताकी जब कभी एहसास लौटें खैरमकदम कर सकूं .
द्रुत टिपण्णी के लिए आपका शुक्रिया भाई जान .
पाँव का रोना...बहुत सुंदर प्रस्तुति|
गहरी अर्थपूर्ण कविता!
हमें उत्साहित करने के लिये
आप सभी को दिल से
शुक्रिया !
ब्लॉग पर आगमन और समर्थन प्रदान करने के लिए बहुत- बहुत आभार, यह स्नेह सम्बन्ध अनवरत रहेगा,यही अपेक्षा है.
बहुत सुन्दर भाव से लिखी है रचना !
जीवन फिर भी चलते रहना चाहिए ...
सुन्दर भाव संजोय हैं ...
मार्मिकता के साथ ..सार्थक संदेश भी दे रही है अभिव्यक्ति ..बहुत ही बढि़या।
कविता दिल को छू गई । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
आप बहुत अच्छा likhte हैं...किन्तु skaratmkta laayiye... तो आपको ज्यादा अच्छा लगेगा...
डिम्पल जी !
बहुमूल्य सुझाव देने के लिये बहुत बहुत धन्यबाद !
आगे मै कोशिश करूँगा !
आभार !
BEHATAREEN PRASTUTI .....BADHAI NIRALA JI.
marmik avam prabhavi rachna
बेहतरीन..
सारगर्भित रचना.
पाँव के फफोलों से दर काहे का ... ये तो कठिन सफर के दस्तावेज़ हैं ...
Post a Comment