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02 March, 2012

पापा की अहमियत

तूफानों के मुख पर जाकर
हम अपना नीड़ बना बैठे !

तिनका-तिनका जीवन का 
 तोड़-तोड़ कर बिखरा बैठे !


चाहत थी मंजिल पाने की
पर, पग-पग हम भुला बैठे !

 जो ख्वाब सजे थे पलकों पे
हम एक फूँक में ही उड़ा बैठे !

रोये इतना हम फूट-फूटकर 
कि आँखों का नीर सूखा बैठे !

चुन-चुनकर बिखरे तिनके को
हमें पापा गले लगा बैठे !

फिर बाँट कर वो हर  गम मेरा  
हमें जीने की ललक जगा बैठे !

19 comments:

amrendra "amar" said...

waah, kya baat hai bahut khubsurat ahsas

vandana gupta said...

बहुत संजीदा भाव

रविकर said...

NICE

संध्या शर्मा said...

बहुत सुन्दर भाव...

ऋता शेखर 'मधु' said...

मन के भावों की सुंदर अभिव्यक्ति!

vidya said...

सुन्दर भाव...
आशा है आपकी रचनाएँ नियमित पढ़ने का अवसर मिलता रहेगा..

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही बढ़िया रचना है..
ये खबर अपने अच्छी सुनाई है
की ,आप अब से नियमित रहेंगे..
बहुत बढ़िया है जी...:-)

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सुंदर अभिव्यक्ति की भावपुर्ण बेहतरीन रचना,..
फालोवर बन गया हूँ,...

NEW POST...फिर से आई होली...

sangita said...

sundar,bhavbhini post hae aabhar,,

कविता रावत said...

bahut sundar komal bhav..
sundar prastuti..

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह क्या बात हैं जी ...बहुत खूब



हम किसी की क्या कहें
इस जग में खुद
को ही ...तमाशा
बना बैठे ...अनु

महेन्‍द्र वर्मा said...

कोमल भावों को अभिव्यक्त करती सुंदर रचना।

***Punam*** said...

bahut sundar...

Anonymous said...

very nice post!

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 05/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Saras said...

सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

Satish Saxena said...

प्रभावशाली रचना !
रंगोत्सव की शुभकामनायें स्वीकार करें !

Dr.NISHA MAHARANA said...

bahut badhiya.

vijaya pant Mountainneer said...

-------खूबसूरत अभिव्यक्ति

लिखिए अपनी भाषा में...

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