तूफानों के मुख पर जाकर
हम अपना नीड़ बना बैठे !
तिनका-तिनका जीवन का
तिनका-तिनका जीवन का
तोड़-तोड़ कर बिखरा बैठे !
चाहत थी मंजिल पाने की
पर, पग-पग हम भुला बैठे !
जो ख्वाब सजे थे पलकों पे
हम एक फूँक में ही उड़ा बैठे !
रोये इतना हम फूट-फूटकर
कि आँखों का नीर सूखा बैठे !
चुन-चुनकर बिखरे तिनके को
हमें पापा गले लगा बैठे !
फिर बाँट कर वो हर गम मेरा
हमें जीने की ललक जगा बैठे !
19 comments:
waah, kya baat hai bahut khubsurat ahsas
बहुत संजीदा भाव
NICE
बहुत सुन्दर भाव...
मन के भावों की सुंदर अभिव्यक्ति!
सुन्दर भाव...
आशा है आपकी रचनाएँ नियमित पढ़ने का अवसर मिलता रहेगा..
बहुत ही बढ़िया रचना है..
ये खबर अपने अच्छी सुनाई है
की ,आप अब से नियमित रहेंगे..
बहुत बढ़िया है जी...:-)
सुंदर अभिव्यक्ति की भावपुर्ण बेहतरीन रचना,..
फालोवर बन गया हूँ,...
NEW POST...फिर से आई होली...
sundar,bhavbhini post hae aabhar,,
bahut sundar komal bhav..
sundar prastuti..
वाह क्या बात हैं जी ...बहुत खूब
हम किसी की क्या कहें
इस जग में खुद
को ही ...तमाशा
बना बैठे ...अनु
कोमल भावों को अभिव्यक्त करती सुंदर रचना।
bahut sundar...
very nice post!
कल 05/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
प्रभावशाली रचना !
रंगोत्सव की शुभकामनायें स्वीकार करें !
bahut badhiya.
-------खूबसूरत अभिव्यक्ति
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