रूह की धरा से
मन के फलक तक
जब उठती है अदृश्य
मदमस्त दिशाहीन
एक भावनाओं का सैलाब !
तब घटा बन, धीमें-धीमें
कलम की रगों से
बरसती है बूंद - बूंद
फिर खिलता है पन्नों पे
शब्दों का सुन्दर गुलाब !
मैं देखा हूँ शिद्दतों से
मुहब्बत में जब कलम
चूमती है पन्नों को
तभी दुनिया कहती है
बहुत सुन्दर...लाजबाब !!!
11 comments:
मैं देखा हूँ शिद्दतों से
मुहब्बत में जब कलम
चूमती है पन्नों को
तभी दुनिया कहती है
बहुत सुन्दर...लाजबाब ,,,,,
RECENT POST बदनसीबी,
बढ़िया प्रस्तुति |
बधाई स्वीकारें ||
सुंदर प्रस्तुति
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/2/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
सुंदर रचना....
सच है.....
फिर खिलता है पन्नों पे सुंदर गुलाब....बहुत सुंदर
बहुत खूब
मैं देखा हूँ शिद्दतों से
मुहब्बत में जब कलम
चूमती है पन्नों को
तभी दुनिया कहती है
बहुत सुन्दर...लाजबाब !!!
उत्कृष्ट पंक्तियां ...
ये असर मुहब्बत का है या कलम का या मौसम का ...
सिद्दत रहनी चाहिए बस ...
पहली बार पड़ा बहुत सुन्दर लगा.......
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