जीवन में कितना जंग है !
अब बचा नहीं उमंग है !
एक ही पथ है, एक ही रथ है
फिर अपनों से कैसा हठ है !
सब सारथि को ललकार रहा
पूर्वज को धिक्कार रहा !
धन –धान्य की वशीभूत में
भौतिक सुखों की अभिभूत में
पुत्र पिता पे हुंकार रहा !!
क्या लाया था, क्या पाया है ?
जो समेट रहे हो सब जाया है
सृष्टी को जानो और धैर्य करो
यहाँ
तो प्रभु सब माया है !!
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