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23 February, 2019

जीवन का ललकार

जीवन में कितना जंग है !
अब बचा नहीं उमंग है !

एक ही पथ है, एक ही रथ है
फिर अपनों से कैसा हठ है  !


सब सारथि को ललकार रहा
पूर्वज को धिक्कार रहा !
धन –धान्य की वशीभूत में
भौतिक सुखों की अभिभूत में
पुत्र पिता पे हुंकार रहा !!

क्या लाया था, क्या पाया है ?
जो समेट रहे हो सब जाया है
सृष्टी को जानो और धैर्य करो
यहाँ तो प्रभु सब माया है !!

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जीवन पुष्प

हमारे नये अतिथि !

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