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01 October, 2017

मेरा रौनक


 
मैं उब गया था जीने से
जब दर्द सिमटा था सीने से !
 
मर ही जाते मयखाने में,
कोई रोका ना होता पीने से !

 
छलते आये जो मासूमियत पे
मुंह मोड़ लूँगा सब  कमीने से !

 
कल तक मुरझाया था ये चेहरा,
धुलकर निखर गया पसीने से ! 

 
उम्मीद सोई थी वर्षों तलक
आज जागी है करीने से !

 
तुम आये तो रौनक आया 
एक जरिया मिला है जीने से...!

3 comments:

'एकलव्य' said...

आपके इस सुन्दर व सार्थक प्रयास के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें
आभार। ''एकलव्य''

Sudha Devrani said...

बहुत ही सुन्दर.....

Amrita Tanmay said...

बेहतरीन ।

लिखिए अपनी भाषा में...

जीवन पुष्प

हमारे नये अतिथि !

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