मैं उब गया था जीने से
जब दर्द सिमटा था सीने से !
मर ही जाते मयखाने में,
कोई रोका ना होता पीने से !
छलते आये जो मासूमियत पे
मुंह मोड़ लूँगा सब कमीने से !
कल तक मुरझाया था ये चेहरा,
धुलकर निखर गया पसीने से !
उम्मीद सोई थी वर्षों तलक
आज जागी है करीने से !
तुम आये तो रौनक आया
एक जरिया मिला है जीने से...!
3 comments:
आपके इस सुन्दर व सार्थक प्रयास के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें
आभार। ''एकलव्य''
बहुत ही सुन्दर.....
बेहतरीन ।
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