ना जाने कितने रिश्ते टूट गए करीब का !
अब जा के हुआ है साथ मेरे हबीब का !!
खा कर ठोकरें गिरा हूँ ज़माने में बहुत
जायेंगे संभल, ये तो खेल है नसीब का !
पाया हूँ सिद्दत से, कभी नहीं खोऊंगा तुम्हे
रखुं कांधे पे सर, सहलाना इस रकीब का !
वादा करो निभायेंगे हम, साथ कयामत तक
मेरी नाजनी, है ये दुनिया बहुत अजीब का !
बन जाऊँगा कभी मुकद्दर का सिकन्दर मैं
बस दिलाते रहना यकीं, तुम इस गरीब का !
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हबीब = दोस्त
रकीब = गरीब
नाजनी = दोस्त (स्त्री)
मुकद्दर = किस्मत
सिकंदर = सम्राट
1 comment:
सुन्दर रचना
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