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06 October, 2011

उन्हें ढूंढ़ती मेरी आंखें

उन्हें ढूंढ़ रही आंखें तरसकर
नदी किनारे
बरस बरसकर
गिरती पलकें थक हारकर
  करुण वेदना 
का अश्रु बहाकर।


याद बहुत आती है मुझको
मेरी मुहब्बत
, मेरी जान
मैं अब भी वही पर ढूंढ़ रहा हूं 
उनके कदमों का निशान...

व्याकुल मन से गले लगाकर,
रखकर मेरे हाथों में हाथ
यहीं तड़पकर छोड़े थे वो,
मेरे जीवन का अंतिम साथ।


प्रेम के शत्रु घात लगाये
रहते थे हरदम तैयार
,
इस कार, हमदोनो मिलने
एक दिन आये
थे, नदी के पार।

हमदोनो की हंसी ठिठोली
कुछ पल सुहाने
, बीते थे संग
अचानक चीखे
, वो पैर पटककर
काट लिया जो उन्हें भुजंग।

  गोद में लेटे तड़प रहे थे
वो पल पल हुये निढाल
,
  नाकाम हुई थी हर कोशीश
मैं भी था बेबस और बेहाल।

नैनों से धारा छूट रही थी
सासों की लड़ीया टूट रही थी
जिंदगी उनकी रुठ रही थी

मौत आकर लूट रही थी।


निर्जल अधर सब सूख रहा था
व्याकुल आत्मा घूट रहा था
ढलता सूरज डूब रहा था।


उनके अंतिम शब्दों का तराना
कह गये मुझको भूल ना जाना

छोड़ चला मैं तेरा जमाना
मेरे बाद , यहां तुम रोज आना।

मैं नही  मेरी याद सही,
तुम उसे ही गले लगाते रहना
बुझ ना पाये मेरे प्यार का दीपक,
तुम आकर इसे जलाते रहना...।

2 comments:

Vibha Saurav Kumar said...

touching.........

avanti singh said...

bahut achi rachna hai...bdhaai....

लिखिए अपनी भाषा में...

जीवन पुष्प

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