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08 October, 2011

मेरी नाजनी

मेरी नाजनी का नवसत दुति
छवि विभारन सी प्रस्तुति
रजनी में जो उसकी दीप्ति है,
मेरे तृषित मन की तृप्ति है।


प्रेमिल, रसवति, प्रियवादी वो
रंजिनी, मुखरित, नयन सादी वो
निधि विभा की वो सृष्टि है
मेरे तृषित मन की तृप्ति है।

मानवती, मानसी, वो नयनागर
पुलकित मन से वो मेरे घर
स्नेहों का जो करती वृष्टि है
मेरे तृषित मन की तृप्ति है।

करुण वेदना और सब की व्यथा
चेहरे को पढ, कह देती कथा
बड़ी अनोखी जो उसकी दृष्टि है
मेरे तृषित मन की तृप्ति है।

 हमे अपनी समाश्रय में रखना
प्रामद्य होकर प्रेमालाप करना
यही निरंतर जो उसकी कृति है
मेरे तृषित मन की तृप्ति है।

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर

संजय कुमार
आदत….मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

लिखिए अपनी भाषा में...

जीवन पुष्प

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