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29 July, 2012

आखिर क्यों...?


तुम्हे जरुरत क्या थी
मेरे ख्वाब में आने की,
 बसकर रूह में फिर से
एक आग लगाने की...?

तुम्हे जरुरत क्या थी
दस्तूर निभाने की,
सूखे  हुए पलकों को 
अश्कों में भिंगाने की...?

तुम्हे जरुरत क्या थी
दाग दामन में लगाने की
परवाह तो कर लेती
एक बार ज़माने की...?

12 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

पूरे चार माह बाद आपने नया कुछ पोस्ट किया......
इन्तेज़ार का फल सचमुच मीठा होता है ....
बहुत सुन्दर रचना...

अनु

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन , बधाई.

मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर प्रतीक्षा है आपकी .

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना ,,,,मनीष जी बधाई ,,,

RECENT POST,,,इन्तजार,,,

संध्या शर्मा said...

बहुत सुन्दर रचना... बधाई

Anju (Anu) Chaudhary said...

प्यार की तड़प लिए हुए शब्द रचना

Vinay said...

गहरी मनोभावनाए

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S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर , बधाई.

कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें.

Vinay said...

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ

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मनीष said...

khubsurat andaj hai gila karne ka....

अज़ीज़ जौनपुरी said...

jindgi me sikve gile jaruri ho gye hai,ye kah vo muskrake chal diye hai,sambedanshil rachna

अज़ीज़ जौनपुरी said...

वह क्या खूब लिखा है,

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

लिखिए अपनी भाषा में...

जीवन पुष्प

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