तुम्हे जरुरत क्या थी
मेरे ख्वाब में आने की,
बसकर रूह में फिर से
एक आग लगाने की...?
तुम्हे जरुरत क्या थी
दस्तूर निभाने की,
सूखे हुए पलकों को
अश्कों में भिंगाने की...?
तुम्हे जरुरत क्या थी
दाग दामन में लगाने की
परवाह तो कर लेती
एक बार ज़माने की...?
12 comments:
पूरे चार माह बाद आपने नया कुछ पोस्ट किया......
इन्तेज़ार का फल सचमुच मीठा होता है ....
बहुत सुन्दर रचना...
अनु
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन , बधाई.
मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर प्रतीक्षा है आपकी .
बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना ,,,,मनीष जी बधाई ,,,
RECENT POST,,,इन्तजार,,,
बहुत सुन्दर रचना... बधाई
प्यार की तड़प लिए हुए शब्द रचना
गहरी मनोभावनाए
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बहुत सुन्दर , बधाई.
कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें.
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ
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khubsurat andaj hai gila karne ka....
jindgi me sikve gile jaruri ho gye hai,ye kah vo muskrake chal diye hai,sambedanshil rachna
वह क्या खूब लिखा है,
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
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