जीवन में, कई साँझ को
आँधियाँ आती रही
डाली-डाली, झूम-झूमकर
राग नया गाती रही ।
टूटे कई हरे पत्ते भी,
संग हवा के उड़ते रहे
बसते थे जिस नीड़ के अंदर
तिनकों में वो बिखरते रहे ।
आज थमी है आँधियाँ आहिस्ता,
वो तो हवा की साजिश थी ।
अब दशा कुछ बदल रहा है
ये तो खुदा की ख्वाहिश थी ।।
16 comments:
बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने की अनुकम्पा करें, आभारी होऊंगा .
कुदरत का है करिश्मा,होती सुबहो शाम
जीवन-मरण सत्य है,काहे फिर इल्जाम,,,,,
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सुन्दर रचना..
अनु
खुदा की ख्वाहिश है तो कुछ अच्छा ही होगा
हम्म.. खुदा की ख्वाइश है तो अच्छा तो होगा ही..
कोमल भाव लिए रचना....
:-)
ख्याहिश का ये संसार कब पूर्ण होगा ...ये कोई नहीं जानता
होई सोई जो राम रची राखा!
खुदा की ख्वाहिश!
उम्दा!
आशीष
--
द टूरिस्ट!!!
वाह !! सुंदर सृजन...
ईश्वर की मर्जी के बिना कुछ नहीं होता...
ये हवा की शाजिश है या अपनी किस्मत .... क्या पता ...
सुन्दर भावमय रचना ...
टूटे कई हरे पत्ते भी
संग हवा के उड़ते उड़ते
बसते थे जिस नीड के अंदर
तिनकों में वे रहे बिखरते
कमाल के भाव ...आभार आपका !
waah khubsurat ehsas
सुंदर रचना के लिए आपको बधाई
संजय कुमार
आदत….मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
सब कुछ है पास ..
फिर भी इंतज़ार क्या है ..
यूँ दूर कुछ धुंध सा दीखता क्या है ...
मंजिल नहीं है मेरी ...
मेरे मन की कोई ख्वाहिश ...
सफ़र में ये तमाशा क्या है ...
सब कुछ है पास ..
फिर भी इंतज़ार क्या है ..
यूँ दूर कुछ धुंध सा दीखता क्या है ...
मंजिल नहीं है मेरी ...
मेरे मन की कोई ख्वाहिश ...
सफ़र में ये तमाशा क्या है ...
बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .
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