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19 August, 2012

खुदा की ख्वाहिश

जीवन में, कई साँझ को  
आँधियाँ आती रही
डाली-डाली, झूम-झूमकर
राग नया गाती रही 


टूटे कई हरे पत्ते भी, 
संग हवा के उड़ते रहे
बसते थे जिस नीड़ के अंदर
तिनकों में वो बिखरते रहे 

आज थमी है आँधियाँ आहिस्ता, 
वो तो हवा की साजिश थी 
अब दशा कुछ बदल रहा है
ये तो खुदा की ख्वाहिश थी 

16 comments:

S.N SHUKLA said...


बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने की अनुकम्पा करें, आभारी होऊंगा .

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

कुदरत का है करिश्मा,होती सुबहो शाम
जीवन-मरण सत्य है,काहे फिर इल्जाम,,,,,

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Vinay said...

हृदयस्पर्शी उत्कृष्ट

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ANULATA RAJ NAIR said...

ईश्वर का हाथ हो सर पर तो कोई क्या बिगाड़े...
सुन्दर रचना..

अनु

रश्मि प्रभा... said...

खुदा की ख्वाहिश है तो कुछ अच्छा ही होगा

मेरा मन पंछी सा said...

हम्म.. खुदा की ख्वाइश है तो अच्छा तो होगा ही..
कोमल भाव लिए रचना....
:-)

Anju (Anu) Chaudhary said...

ख्याहिश का ये संसार कब पूर्ण होगा ...ये कोई नहीं जानता

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

होई सोई जो राम रची राखा!
खुदा की ख्वाहिश!
उम्दा!
आशीष
--
द टूरिस्ट!!!

ऋता शेखर 'मधु' said...

वाह !! सुंदर सृजन...
ईश्वर की मर्जी के बिना कुछ नहीं होता...

दिगम्बर नासवा said...

ये हवा की शाजिश है या अपनी किस्मत .... क्या पता ...
सुन्दर भावमय रचना ...

Satish Saxena said...

टूटे कई हरे पत्ते भी
संग हवा के उड़ते उड़ते
बसते थे जिस नीड के अंदर
तिनकों में वे रहे बिखरते

कमाल के भाव ...आभार आपका !

Anju (Anu) Chaudhary said...

waah khubsurat ehsas

संजय भास्‍कर said...

सुंदर रचना के लिए आपको बधाई

संजय कुमार
आदत….मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

Harish Ramawat said...

सब कुछ है पास ..
फिर भी इंतज़ार क्या है ..
यूँ दूर कुछ धुंध सा दीखता क्या है ...
मंजिल नहीं है मेरी ...
मेरे मन की कोई ख्वाहिश ...
सफ़र में ये तमाशा क्या है ...

Harish Ramawat said...

सब कुछ है पास ..
फिर भी इंतज़ार क्या है ..
यूँ दूर कुछ धुंध सा दीखता क्या है ...
मंजिल नहीं है मेरी ...
मेरे मन की कोई ख्वाहिश ...
सफ़र में ये तमाशा क्या है ...

Madan Mohan Saxena said...

बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .

लिखिए अपनी भाषा में...

जीवन पुष्प

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