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16 September, 2012

माँ की पीर

ह्रदय को लिए ह्रदय में माँ
तुम हो कितने संशय में माँ
देने को इन्हें जीवन सरल
हो रही तू कितनी विकल
पता नहीं ये तुमको कल
मासूमियत पे करेंगे छल...! 


जिनको तुम खुदा से मांगी
वो भूल जायेंगे तेरा यतन
शायद तुम्हारी मौत पर माँ
नसीब भी ना हो कफ़न
तुम इनकी अरमां के खातिर
अपनी खुशियाँ करती हो दफ़न
तेरे आँचल के साये  में ही
सब रिश्तों का है संजन
क्यों नहीं समझते हैं हमसब
अटूट प्रेम का ये बंधन ... ?

23 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत खूबसूरत मनीष जी...
हृदयस्पर्शी...
अनु

रविकर said...

मस्त है भाई जी ||

रविकर said...

लगे मर्म पर चोट जब, याद करें वो रात |
जब ईश्वर से थी कही, पुत्र रत्न की बात |
पुत्र रत्न की बात, घात जीवन पर होवे |
मारी कन्या भ्रूण, आज क्यूँ उस पर रोवे |
पुत्रमोह का पाप, आज भुगते तू भारी |
वह कन्या तो आज, आप की है आभारी ||

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

बहुत सुन्दर लिखा है... सच माँ जैसा प्यार कही नहीं मिलता ... और बच्चों कों भी माँ पिता कों सम्मान और प्यार देना चाहिए ...विशेषतौर पर उनके बुदापे पर ..

मेरा मन पंछी सा said...

हृदयस्पर्शी रचना..
माँ का प्यार बहुत अनमोल है..
हमें भी उनके बुढ़ापे में उनका सहारा बनना चाहिए...
:-)

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुंदर भाव

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

वाह!
आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को आज दिनांक 17-09-2012 को ट्रैफिक सिग्नल सी ज़िन्दगी : सोमवारीय चर्चामंच-1005 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

मनीष said...

अद्भुत है मनीष जी

S.N SHUKLA said...


सुन्दर रचना, सार्थक भाव, बधाई.

कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारें , आभारी होऊंगा.

वाणी गीत said...

माँ जानती है यह हकीकत मगर ममता से लाचार !
गहन अभिव्यक्ति !

देवेन्द्र पाण्डेय said...

माँ तो माँ होती है। सिर्फ प्रेम करना जानती है।

निवेदिता श्रीवास्तव said...

माँ का दुलार ऐसे किसी भी तर्क को नहीं मानता ... उसके लिए उसकी सन्तान बेटा या बेटी न हो कर सिर्फ बच्चे होते हैं ,पर हाँ बच्चे उसको जरुर भूल जातें हैं ....

Rajesh Kumari said...

एक माँ को समर्पित कितने उन्नत भाव काश हर एक के ह्रदय में हों माँ तो फिर भी निःस्वार्थ पालती है अपने बच्चों को

Anonymous said...

maa to apne santaan ko samajhati hi hai badi baat hai ki santaan bhi use samajhane ka prayash kare ........is poetry me shayad vahi baat hai

Jeevan Pushp said...

गाफिल जी ! बहुत- बहुत आभार आपका !

Dr.NISHA MAHARANA said...

bhoutikta men ulajh gaye hain log ...

सदा said...

वाह बेहतरीन भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्‍यक्ति में ।

दिगम्बर नासवा said...

मार्मिक अभिव्यक्ति है .. आज के भौतिक युग में स्वार्थी हो रहा है इनसान .. माँ के त्याग को समझ नहीं पाता ...

प्रेम सरोवर said...

बेहतरीन प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं।

sangita said...

मन की पीर मन में छिपाना तो माँ की ममता ही है सार्थक पोस्ट बधाई

मन्टू कुमार said...

माँ के बारे में जितना लिखा जाए उतना कम...
उम्दा भाव से सजी एक बेहतरीन रचना |

सादर |

संजय भास्‍कर said...

माँ को समर्पित बढ़िया रचना के लिए बधाई

संजय भास्‍कर said...


आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

@ sanjay bhaskar

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