ये कैसी तेरी निर्मम प्यास,
ये कैसी सियासत की भूख !
जो क़त्ल करके मानवता का
ले रहे हो सत्ता का सुख !!
लूट की भूख जब जगती है
तब खाते हो हमसब की रोटी ।
बनकर दुह्शासन कलयुग का
खीचते हो गाँधी की, एकलौती धोती।।
हसरतों को जगने से पहले
जहर देकर, सुला देते हो
हमारे आंसुओं के आगे तुम
पसीना समझ कर हवा देते हो ।।
इस सफ़ेद कुरतों के आगे
भोली जनता आजतक भागे ।
हर बार भुलाते रहे, ये अपना दर्द
6 comments:
सुन्दर भाव लिए बेहतरीन रचना..
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाये..
:-)
काश के भारत जागे.....
सशक्त रचना.
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
अनु
सशक्त रचना...हार्दिक शुभकामनाएँ !!!
सहगल ढिल्लन शाहनवाज
इन्कलाब जिंदाबाद ....
एक नहीं कई नाम
आज आजादी खोजते हैं
पूछते हैं सवाल
कहाँ गये -
लाल बाल पाल
जिन्होंने कहा था
- " आजादी याचना से नहीं मिलती
बल्कि इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है। "
किसने मिटा दिया भारत माँ की हथेलियों से
इक़बाल के ये शब्द -
"नहीं है नाउम्मीद इक़बाल अपनी किश्ते-वीरां से
ज़रा नम हो तो ये मिट्टी बड़ी ज़रखेज़ है साक़ी"
फांसी की लकीरों से बेखबर
भगत, सुखदेव, राजगुरु
वक़्त से पहले अपने बच्चों की कुर्बानी के आगे
सिसकियों को पी जानेवाली उनकी माएँ
पूछते हैं आज के आडम्बर से -
" किसने छिना है मेरा प्यारा वतन
प्यारा वतन मेरा प्यारा वतन
जिस वतन के लिए सैकड़ों मर गए
नाम जिंदा शहीदों में जो कर गए
खूं से सींचा था हमने जो ये चमन
कहो -
किसने छिना है हमसे ये प्यारा वतन ..."
अमीन ... संकल्प लेने का संमय है आज ..
१५ अगस्त की बधाई ...
सशक्त भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
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