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11 July, 2015

प्रेम पथ

सहर्ष प्रेम पथ पर
हम दीपक जलाये
थी चाहत उड़ने की
दूर पंख फैलाये
था तकदीर का दोष
या तदबीर का रोष
जो मुन्तजिर हुए हम
और छुट गया संग
गूंजती है आज भी
आवाज रूहानी सी
उठती है सीने में
एक कसक पुरानी सी
अब नीर नैनों के   
स्वछन्द बह जाये
एक संदेसा है उनको  
वो भी दिल से भुलाये     
ताकि बिसरी हुई यादें
अब, और न रुलाये...!

3 comments:

Unknown said...

AAPKI KAVITA PADH KE HAME APNI KAHANI YAAD AA GAYI..
SUPERB KAVITA, SHABDO KA TAALMEL BAHUT ACHCHA HAI...

Jeevan Pushp said...

बहुत - बहुत धन्यवाद जी !!!

Anonymous said...

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